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मां बनकर देखा, अब बनूंगी सास -08-Jan-2022

भाग 2 


इस कहानी को पढ़कर अधिकांश पाठकों ने मुझे सलाह दी है कि इसका दूसरा भाग भी लिखिए । इसलिए पाठकों के आग्रह पर और मैं भी चाहता हूं कि इस कहानी को पूर्ण किया जाए इसलिए इसका दूसरा और अंतिम भाग लिख रहा हूं । बस इतना निवेदन है कि समीक्षा करना ना भूलिएगा । 
राधिका अपने बेटे और बहू के व्यवहार से बहुत क्षुब्ध हो गई थी । उसने उन दोनों को सबक सिखाने का निर्णय कर लिया था । इसलिए उसने सुबह ही कह दिया कि वह मथुरा वृन्दावन घूमने जायेगी । 

इस घोषणा से आयुष सकते में आ गया । इतने में स्वाति भी जागकर आ गई थी । उसने देखा कि आयुष के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही हैं । डाइनिंग टेबल पर चाय नाश्ता भी नहीं है और मां जी भी वहां पर नहीं हैं । 

स्वाति ने आयुष से पूछा "क्या हुआ ? तुम इतने परेशान से क्यों लग रहे हो ? और अभी तक चाय नाश्ता भी नहीं बना" ? 

अब पहली बार आयुष के स्वर में तल्खी थी "अगर चाय नाश्ता करना था तो जल्दी जगती और बना लेती" ? 

स्वाति ने आश्चर्य से आयुष को देखा जैसे ये कोई दूसरा आदमी हो । बोली "तुम तो जानते हो आयुष कि मैं आठ से पहले नहीं जगती हूं । और मुझे जगते ही चाय चाहिए । जाओ , मेरे लिए चाय बना दो ना प्लीज़" ? 

आयुष ने कहा "अब अपनी आदतें बदल डालो, डार्लिंग । अब तुम्हारी शादी हो गई है । ये मायका नहीं , ससुराल है । तुम यहां की बहू हो, बेटी नहीं । मां ने तुमको कल बेटी का खूब प्यार दिया था लेकिन तुमने उन्हें क्या दिया ? दुःख, संताप, क्लेश, पीड़ा के अलावा" ? 

"मैंने ऐसा क्या कर दिया है जो तुम मुझ पर इल्ज़ाम पे इल्ज़ाम लगाए जा रहे हो । मुझे खाना पसंद नहीं आया तो कैसे खाती ? अब इस बात पर मां जी नाराज़ हों तो मैं क्या करूं " ? 

"सही कह रही हो । मम्मी तो नौकरानी है ना और तुम महारानी ? चलो जाओ और दोनों के लिए चाय बनाकर लेकर आओ" । पहली बार आयुष ने आदेशात्मक भाषा का इस्तेमाल किया था । स्वाति को घोर आश्चर्य हो रहा था कि यह आयुष को क्या हो गया है ? उसने कहा " मेरी तबीयत ठीक नहीं है । आप खुद बना लो" । और यह कहकर वह अपने कमरे में चली गई। 

इस घटना से आयुष हतप्रभ रह गया । कल से इसने किया ही क्या है जो इसकी तबीयत खराब हो गई ? बहुत ज्यादा सिर पर चढ़ाने का यही अंजाम होता है । लेकिन सिर पर तो उसने ही बैठाया था न । कल वह मम्मी का इतना अपमान करती रही और मैं खामोश बैठा रहा । क्या इसी दिन के लिए मुझे मां बाप ने पाल पोस कर बड़ा किया था ? पापा की मृत्यु के बाद सारी जमा-पूंजी मां ने मेरी पढ़ाई और शादी में खर्च कर दी । क्या इस दिन के लिए ? कोई न कोई इलाज तो करना ही पड़ेगा इसका "!

यह कहकर वह राधिका के कमरे में चला गया । राधिका अपनी यात्रा की तैयारी करने लगी । लगभग एक घंटे तक दोनों में क्या बातें हुई , पता नहीं । आयुष अपने कमरे में आकर सो गया। 

करीब ग्यारह बजे स्वाति बिस्तर से खड़ी हुई। नहा धोकर तैयार होकर वह करीब एक बजे नीचे आई तो देखा कि एक सत्संग की मंडली आई हुई है और अपना पूरा माइक सिस्टम लगा रही है ‌। तो क्या आज फिर सत्संग होगा ? और वह भी माइक से ? उसका तो सिर फट जाएगा ? वह पैर पटकती हुई अपने कमरे में गई और आयुष को जगाया 
"आयुष , देखो जरा नीचे जाकर । मां जी ने सत्संग वालों को बुलवा लिया है और पूरा साउंड सिस्टम भी साथ लाए हैं वे । इतने शोर में मैं कैसे रहूंगी ? मेरा तो सिर दर्द से फट जाएगा" ? 

आयुष बड़ी गंभीरता से बोला "बात तो सही है । इतना शोर कैसे झेलोगी तुम ? ऐसा करो , तुम किसी होटल में चली जाओ । मैं अभी बुक कर देता हूं" । और वह अपना मोबाइल लेकर सर्च करने लगा । 

"तुम पागल तो नहीं हो गए हो ? मैं अकेली होटल जाऊंगी क्या ? जाएंगे तो दोनों ही जाएंगे नहीं तो मैं नहीं जाऊंगी "। 
साफ साफ धमकी थीं । इसी के चलते अब तक आयुष पर हुकूमत कर रही थी वह । 

"तुम मां जी को कहते क्यों नहीं कि वे सत्संग नहीं करें । हमारे जाने के बाद जो चाहें करें" । स्वाति बोली । 
"तुम तो ऐसे कह रही हो कि जैसे यह घर तुम्हारा हो और तुम आदेश दे रही हो । घर की मालकिन मम्मी हैं । वे जो चाहें करें , हम कौन होते हैं रोकने वाले उन्हें" ? 

"प्लीज़ आयुष , कुछ करो ना । ऐसे तो कैसे रह पाएंगे हम संडे तक"  ? 
"ऐसा करता हूं कि मैं तुम्हारा टिकिट आज की फ्लाइट से करवा देता हूं । तुम वापस चेन्नई चली जाओ" । 
"ये तुमको हो क्या गया है आयुष ? मैं अकेली जाऊंगी क्या" ? 

इतने में नीचे से भजनों की तेज तेज आवाज आने लगी । स्वाति एकदम चिढ़कर बोली "सुना तुमने ? कितना कान फाड़ू शोर हो रहा है ? मेरा तो सिर फट जाएगा"  ? 

"ऐसा करो एक सिरदर्द की गोली लो और सो जाओ । मैं तो भजन सुनने नीचे जा रहा हूं" । और वह जाने लगा । स्वाति वहीं धम्म से पलंग पर बैठ गई। 

इधर राधिका ने केवल अपने लिए खिचड़ी बना ली थी और खा ली थी । आयुष और स्वाति दोनों सुबह से भूखे ही थे । आज आयुष ने भी कोई ऑर्डर नहीं किया था । वह भजन मंडली में आकर बैठ गया और भजनों का आनंद लेने लगा । 

उधर स्वाति शोर से वैसे ही परेशान थी उस पर सुबह से कुछ भी नहीं खाया था उसने इसलिए और भी परेशान हो गई थी । परंतु सबसे बड़ी परेशानी तो आयुष के बदलते व्यवहार से थी । अब क्या करे वह ? उसने आखिरी हथियार चला । आयुष को फोन करके अपने पास बुलाया और कहा कि उसे बुखार आ रहा है । आयुष ने उसका हाथ छुआ तो लगा हल्की सी हरारत है । वह उसे लेकर अस्पताल चला गया। 

इधर राधिका ने अपने मौहल्ले की सब औरतों को बुला लिया । सब औरतों ने खूब डांस किया । भजनों का आनंद लिया । शाम तक चलता रहा ये कार्यक्रम । 

उधर आयुष स्वाति को लेकर जब अस्पताल पहुंचा और फिजीशियन को दिखाया तो उसने फूड पॉइजनिंग बताया और पूछा कि कल क्या खाया था ? जब उनको यह बताया कि कल दोनों टाइम खाना "जोमैटो" से मंगवाया था तो डॉक्टर ने कहा "ये बाहर का खाना बिल्कुल बंद करना होगा । आज केवल खिचड़ी और दलिया लीजिए । कल एक बार फिर से मुझे दिखाइए । और ये दवाएं ले लेना । उसे पर्चा पकड़ाते हुए डॉक्टर ने कहा । 

दोनों घर आ गए । स्वाति को भूख लग रही थी लेकिन खाने को कुछ नहीं था । क्या करे वह ? मां जी से कैसे कहे खिचड़ी बनाने को? उसने कातर नेत्रों से आयुष को देखा । आयुष ने हाथ खड़े कर दिए । बोला "मम्मी से कह दो खिचड़ी बनाने को" । और वह सत्संग में बैठ गया । भूख तो उसे भी बहुत तेज लग रही थी लेकिन कल मम्मी को उसने जो हर्ट किया था तो आज उपवास तो करना पड़ेगा ना । 

अंत में स्वाति ने राधिका से कहा "मां जी । डॉक्टर ने फूड पायजनिंग बताया है और केवल खिचड़ी या दलिया ही खाने के लिए कहा है" 
"तो बना लो और खा लो " । राधिका ने सपाट कह दिया । 
"मुझे नहीं आता है बनाना , मां जी" 
"तो जोमेटो से मंगवा ले । तुझे तो जोमैटो वाला खाना बहुत पसंद है न " 
"डॉक्टर ने बाहर का खाना खाने को मना किया है मां जी" 
"पर मेरे हाथ से तो नमक मिर्च घी वगैरह ज्यादा पड़ता है जो तुझे पसंद नहीं है" । 
"मैं सब खा लूंगी मां जी । बस, आप तो बना दो" । 

राधिका समझदार थी । रस्सी को ज्यादा खींचने से भी वह टूट जाती है । इसलिए आज का सबक इतना ही काफी है । ऐसा सोचकर वह खिचड़ी बनाने चली गई । आयुष और स्वाति को आवाज देकर डाइनिंग टेबल पर बुलवा लिया था । स्वाति आकर डाइनिंग टेबल पर प्लेट वगैरह लगाने लगी । दोनों ने पेट भरकर खिचड़ी खाई थी । खिचड़ी अच्छी भी लग रही थी । स्वाति बोली "बहुत अच्छी बनी थी मां जी, खिचड़ी । मुझे भी सिखा दीजिए न" ? 
"शाम को जब बनाऊंगी तब तू भी साथ रहना । ऐसे बताने से काम नहीं चलेगा" । 

"ठीक है मां जी" । खिचड़ी खाकर वह बर्तन सिंक में रख रही थी कि राधिका ने कहा "तेरे झूठे बर्तन कौन साफ करेगा ? कल तो मैंने कर दिए थे लेकिन आगे नहीं करूंगी । इसलिए इन बर्तनों को साफ करके ही जाना" । और राधिका सत्संग में बैठ गई। 

शाम को जब राधिका खिचड़ी बनाने लगी तो स्वाति भी आ गई और वह भी हाथ बंटाने लगी । स्वाति ने कहा "कल मेरे मम्मी पापा आ रहे हैं मां जी" 
"क्या एक दो दिन यहां रुकेंगे " ? राधिका आज तड़के ही उठ गई थी । कितनी हल्की लग रही थी वो आज । जैसे उसके पांव जमीं पर पड़ते ही नहीं थे । वह चल नहीं रही थी बल्कि उड़ रही थी । बहुत सारा काम पड़ा था । वह जल्दी जल्दी हाथ चलाने लगी । 
आयूष और स्वाति 11 बजे आने वाले थे । आयूष की शादी के बाद वे दोनों पहली बार घर आ रहे थे । फरवरी में शादी हुई तो हनीमून के लिए पेरिस चले गए । वहां से लौटे तो कोरोना संकट में चेन्नई में ही रह गए । पूरे ढाई महीने से उसने देखा नहीं था अपने बेटे बहू को । बस फोन पर ही बतिया कर मन को संतुष्ट कर लेती थी । सरकार ने कल से लॉकडाउन में ढील दे दी थी । अब केवल हॉट स्पॉट पर ही कर्फ्यु रहेगा । इसलिए आयूष ने पहली फ्लाइट में बुकिंग करा ली थी । आज वो 11 बजे की फ्लाइट से आने वाले हैं। 

राधिका को याद आया कि पांच साल पहले आयूष के पिता की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी । उनके ग्रेच्युइटी फंड और खुद की जमा पूंजी से उसने आयूष को पढ़ाया था । शादी वाले दिन वह खूब फूट फूट कर रोई थी । काश कि आयूष के पिता जिंदा होते और अपने अरमानों को पूरा होते देखते । लेकिन विधि के आगे किसकी चलती है । 

अभी वह साफ सफाई कर ही रही थी कि मिसेज शर्मा का फोन आ गया। पूछ रही थी कि शाम पांच बजे होने वाला सत्संग होगा कि नहीं। कोरोना में लॉकडाउन से पहले तो हर रविवार को पांच बजे राधिका के घर सत्संग होता था। करीब दस पंद्रह  कॉलोनी की औरतें इकट्ठा हो जाती थीं। थोड़ा सत्संग करतीं और थोड़ी इधर उधर की बातें भी कर लेतीं थीं। लॉकडाउन खुलने के बाद आज पहला रविवार है । इसलिए वह पूछ रही थी। राधिका ने भी कह दिया कि होगा क्यों नहीं । जरूर होगा। सबको सूचना दे दो । 

अब राधिका ने साफ सफाई करके सबके लिए नाश्ता तैयार किया । खाने की आधी तैयारी कर ली । फिर नहा धोकर 11 बजे तैयार हो गई। सवा 11बजे आयूष का फोन आ गया । प्लेन लैंड कर चुका था । बारह बजे के आसपास दोनों घर आ गए। 

दोनों ने राधिका के पैर छुए। राधिका ने दोनों को गले लगा लिया । स्वाति को तो कस के भींच लिया था उसने । कहा कि तू मेरी बहू नहीं बेटी है और मैं तेरी सास नहीं मां हूं । स्वाति ने भी मुस्कुराकर हामी भर दी। 

दोनों अपने कमरे में चले गए और सुस्ताने लगे। इतने में राधिका ने आवाज लगाई । बेटा आयूष , नाश्ता तैयार है । आ जाओ । 
कमरे से ही स्वाति की आवाज आई : हमने तो प्लेन में ही नाश्ता कर लिया था मां जी । अभी भूख नहीं है । 
राधिका : पर बेटा , मैंने तो बना लिया था । ऐसा करो , थोड़ा थोड़ा कर लो । 
आयूष नाश्ता करने आ गया । स्वाति नहीं आई। राधिका ने एक बार और प्रयास किया। " स्वाति बेटा , तू भी थोड़ा सा नाश्ता कर ले । देख, मैंने बड़े चाव से बनाया है । 
स्वाति : मुझे बिल्कुल भूख नहीं है मां जी । आप और आयूष दोनों कर लो । मैं बहुत थकी हुई हूं । मुझे थोड़ा आराम करना है । 
राधिका को स्वाति का यह व्यवहार थोड़ा अखरा लेकिन उसने यह सोचकर कि वह इतने लंबे सफर से आई है इसीलिए थोड़ी थकी हुई होने के कारण ऐसा कर रही है , एक गहरी सांस ली।
राधिका और आयूष दोनों नाश्ता करने बैठ गये । खूब इधर उधर की बातें की राधिका ने।‌आयूष ने भी नाश्ता थोड़ा सा ही किया । दर असल भूख उसे भी नहीं थी लेकिन मां का मन रखने के लिए वह नाश्ता करने बैठ गया था ।

नाश्ते के बर्तन साफ करके राधिका खाने की तैयारी करने लगी । आयूष को खीर और मालपूए बहुत पसंद थे । वही बनाये थे उसने । आज सुबह से ही लगातार चकरघिन्नी की तरह घूम रही थी वह । अब तो पैरों में भी दर्द होने लगा था लेकिन बेटे बहू के आ जाने से वह सब कुछ भूल गई थी । बड़े चाव से खाना बनाया था उसने। 

दो बजे उसने दोनों को खाने के लिए बुलाया। स्वाति सोकर उठी  और हाथ मुंह धोकर डाइनिंग टेबल पर आ गई । राधिका को थोड़ा झटका लगा। स्वाति ने खाना बनाने में कोई मदद नहीं की तो कोई बात नहीं मगर सर्व तो कर ही सकती थी । राधिका मन ही मन उस बात को पी गई । आयूष उठा और वह सर्व करने लगा। राधिका ने उसे रोक दिया और खुद ही सर्व करने लगी। 

खाना देखते ही स्वाति ने कहा : ये क्या बनाया है मां जी ? मालपुआ। कितना घी होता है इनमें ? भई , मैं तो नहीं खा सकती इनको । 
राधिका को रोना आ गया । लेकिन किसी तरह उसने खुद को संभाला । कहा : ठीक है । दूसरे आइटम ले ले । 
स्वाति : खीर तो मैं खाती ही नहीं मां जी । फिर मैं खाऊं क्या ? 
राधिका : मैंने तो आयूष की पसंद की चीजें बनाई थी । तेरी पसंद तो मुझे पता ही नहीं है इसलिए बनाती कैसे ? 
स्वाति आयूष से : सुनो । मेरे लिए जोमैटो से खाना मंगवा दो ना । तुमको तो मेरी पसंद पता है ही । और फिर वह अपने कमरे में चली गई। 

राधिका को काटो तो खून नहीं। उसने आयूष की ओर देखा । वह चुपचाप खाना खाने में व्यस्त था । आयूष ने जोमैटो से आर्डर कर दिया था। राधिका चुपचाप खाना खाने लगी । खाना उसके गले से नीचे नहीं उतर रहा था लेकिन वह जबरदस्ती उसे निगल रही थी । वह फूट-फूट कर रोना चाहती थी लेकिन बेटे के सामने कमजोर नहीं दिखना चाहती थी। 

जल्दी से उसने खाना खतम किया और बर्तनों को सिंक में रखकर अपने कमरे में आ गई । पांच मिनट तक खूब रोई थी वह । उसे अपने ससुराल के दिन याद आने लगे । 

वह जब ससुराल पहली बार आई थी तो उसकी सास ने पहले ही दिन उसे बता दिया था कि क्या  करना है और क्या नहीं । कितने ऊंचे स्वर में बात करनी है , किससे बात करनी है किससे नहीं । सारा कुछ समझाने में पूरे दो घंटे लगे थे उसकी सास को । राधिका तो घबरा गई थी । उसे तो कुछ भी याद नहीं रहा कि सास ने क्या कहा था और क्या नहीं । जब आयूष के पापा उसके पास पहली बार आये तो उसने डरते डरते सारी बात उनको बताई । वे बोले : मां और तेरे पचड़े में मैं नहीं पड़ता । तू जाने और मां जाने । इतना कहकर उन्होंने तो वह अध्याय ही समाप्त कर दिया था। अब राधिका के पास और कोई विकल्प बचा ही नहीं था । 

राधिका की सास बात बात पर उसे टोकती । कभी सफाई को लेकर कभी खाने को लेकर कभी किसी दूसरी बात को लेकर। राधिका को उसकी सास ने यह महसूस करा दिया था कि उसे कोई भी काम सलीके से नहीं आता है । राधिका धीरे धीरे इसकी अभ्यस्त हो गई और वह पूरी तरह अपनी सास के बनाए खांचे में फिट हो गई। 

जब उसकी सास मरने को थी तो वह राधिका का हाथ अपने हाथों में लेकर बोली : बेटी । मैंने तेरे साथ बहुत कड़ा व्यवहार किया है । एक बहू को ससुराल के वातावरण में ढलने के लिए बहुत कुछ सीखना होता है । अपनी इच्छाओं को मारकर औरों की इच्छाओं के लिए जीना पड़ता है । मैंने भी अपने मन पर पत्थर रखकर यही सीखा था । मेरी सास ने मुझे ऐसा ही सिखाया था । मैंने भी तुझे वहीं सिखाया है । मुझसे कोई भूल चूक हो गई हो तो क्षमा कर देना । 

राधिका तो यह सुनकर रो पड़ी थी । उसे पता ही नहीं था कि इस कठोर इंसान के अंदर एक नाजुक दिल भी है । उसने अपनी सास के पैर पकड़ लिए और कहा : मां जी । आप तो मेरी मां से भी बढ़कर हो । मेरे मन में आपके लिए कोई मैल नहीं है । आपने तो मुझ पत्थर को तराश कर कोहिनूर बना दिया है । राधिका की सास के मुख पर एक मुस्कान तैर गई और उसने इस संसार को अलविदा कह दिया । 

राधिका के दिल में उसकी सास का यह रूप खिंच गया।‌ अब वह उनकी पूजा करने लगी थी। अगर घर का कोई भी सदस्य कभी भी भूल से उनके बारे में कुछ कह देता था तो वह तुरंत प्रतिवाद पर उतर आती । उसके इस बदले स्वभाव को आयूष के पापा बड़े आश्चर्य से देख रहे थे । 

वह अभी पुरानी दुनिया में ही घूम रही थी कि मिसेज गुप्ता का फोन आ गया । उसे याद आया कि आज तो सत्संग भी होना है । और वह सत्संग की तैयारी करने लगी । 

ठीक पांच बजे कॉलोनी की औरतें इकट्ठा हो गईं । दो महीने बाद मिल रहीं थीं सब लोग । खूब शोर हो रहा था । खी खी करके हंस रही थीं सब । 
अचानक एक आवाज ने सबको चौंका दिया । राधिका ने देखा कि सामने स्वाति खड़ी है । वह अपना सिर दोनों हाथों से भींचे हुए है । 
स्वाति : प्लीज , आप लोग इतना शोर मत करो । मेरा सिर दुख रहा है । 

सब औरतें एकदम से खामोश हो गई। स्वाति अपने कमरे में फिर चली गई। राधिका ने झेंपते हुए कहा कि यह उसकी बहू स्वाति है और आज ही बेटे आयूष के साथ चेन्नई से आई है । थकी होने के कारण उसके सिर में दर्द हो रहा है शायद । 

अब एक एक करके सब औरतों को अपने अर्जेंट काम याद आने लगे और एक एक करके सब चलीं गईं। राधिका थोड़ी देर वहीं बैठी रह गई। फिर कुछ सोचकर वह स्वाति से बोली : बेटी , मैं तेरा सिर दबा दूं ? 
स्वाति ने अपने कमरे से ही जवाब दिया : नहीं मां जी। मैंने सिरदर्द की गोली ले ली है ।

राधिका चाय बनाने के लिए चली गई । चाय तैयार होने के बाद उसने उन दोनों को बुलाया और सब लोग चाय पीने लगे। 

राधिका ने बर्तन साफ किए और डिनर की तैयारी करने लगी । उसने राधिका से पूछ लिया था कि डिनर में क्या बनाना है ।‌वह उसी हिसाब से तैयारी करने लगी। 
रात के आठ बज गए थे। उसने खाना टेबल पर‌ लगा दिया था । दोनों को आवाज लगाई और वह डाइनिंग टेबल पर आ गई। 

स्वाति : सब्जी बहुत तीखी हैं मां जी । 

अब राधिका को गुस्सा आ गया था। वह दिन भर से चाकरी कर रही है और उस पर यह नाटक । सहन करने की भी एक सीमा होती है । अब यह सीमा पार हो चुकी थी। 

रिश्तों को जबरदस्ती नहीं बांधा जा सकता है। जब एक पक्ष कोई रिश्ता निभाना ही नहीं चाहता है तो दूसरा पक्ष कब तक उस रिश्ते को निभायेगा । ताली दोनों हाथों से बजती है एक हाथ से नहीं । अब तक राधिका सास से मां बन रही थी । उसे लगा कि जो रिश्ता जैसा है उसे वैसा ही रहना चाहिए । 

राधिका ने कहा : आयूष , जोमैटो से आर्डर कर दे बेटा । जो यह खाना चाहे मंगवा ले । 

आयूष और स्वाति ने चौंककर उसकी ओर देखा । राधिका अपनी प्लेट लेकर सोफे पर आ गई। सन्नाटा छा गया अचानक । आयूष भी उसके पास आ गया था । दोनों चुपचाप खाना खाने लगे । स्वाति अपना खाना खतम कर चली गई थी । 

सुबह राधिका आराम से जगी । आठ बज गए थे । इतनी देर से वह कभी नहीं उठी थी । बाहर आई तो देखा कि आयूष बैठा हुआ था । 
राधिका : अरे , तू कबसे जग रहा है ? 
आयूष : हूं, सात बजे नींद खुल गई थी मेरी । 
राधिका को पता था कि आयूष को उठते ही चाय चाहिए लेकिन उसने आज तय कर लिया था कि वह अब और नौकरानी नहीं बनेगी । उसने अपने लिए भी चाय नहीं बनाई । अब आयूष की भी हिम्मत नहीं हुई कि वह उसे चाय बनाने के लिए कहे । राधिका ने कहा 
बेटा, मैं मथुरा वृन्दावन जाऊंगी घूमने । वापस सोमवार तक आऊंगी । तू तो रविवार को वापस जायेगा ना ? ऐसा करना कि घर का ताला लगाकर चाबी सामने वाले गुप्ता जी को दे जाना । 
और वह अपनी यात्रा की तैयारी करने चली गई।अब उसने भी तय कर लिया था कि उसने मां बनने का तो प्रयास कर के देख लिया अब वह सास बनकर देखेगी ।

हरिशंकर गोयल "हरि"


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2 Comments

Shrishti pandey

08-Jan-2022 05:00 PM

Very right sir

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Hari Shanker Goyal "Hari"

09-Jan-2022 05:18 AM

धन्यवाद जी

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